सिंधु सभ्यता के छिद्रत पात्र और पितृमेध अनुष्ठान!!!

सिंधु सभ्यता में अनेकों स्थलों जैसे हड़प्पा, कुंताशी आदि से अनेकों छिद्र युक्त पात्र प्राप्त हुए हैं। - Ancient cities of the Indus valley civilization, fig. 8.16, page no. 155 - Harappan Potteries, Pl. 78 इस प्रकार के छिद्रित पात्रों का उल्लेख हमें भारद्वाज पैतृमेधिक सूत्रम् में मिलता है - "शतातृण्णं च कुम्भं त्रिविषूके" - भारद्वाजपैतृमेधिक सूत्रम् २.३.११ अर्थात त्रिपाद मंच पर एक सौ छिद्रों वाला कुम्भ स्थापित करें। " "शतातृण्णं च कुम्भं त्रिविषूके" - भारद्वाजपैतृमेधिक सूत्रम् २.३.११ अर्थात् सौ छिद्र वाले एक कुम्भ को त्रिपाद आसन पर रखना चाहिए। "तस्मिन् दधि वाजिनमिश्रमानयति वैश्वानरे हविरिदं जुहोमि इति" - भारद्वाज पैतृमेधिक सूत्रम् २.३.१३ अर्थात उस घड़े में दहीं और वाजिना को मिश्रित करके भर दें, इसके साथ "वैश्वानरे हविरिदं " मंत्र का जाप करें। यह मंत्र तैत्तिरीय आरण्यक में है - "वैश्वानरे हविरिदं जुहोमि साहस्रमुत्स शतधारमेतम्। तस्मिन्नेष पितरं पितामहं प्रपितामहं बिभरत्पिन्वमाने,इति - तैत्तिरीय आरण...