सिरपुर (छत्तीसगढ़) से प्राप्त देवी पार्वती जी की एक रोचक प्रतिमा!!!

 प्रतिमा निर्माण शिल्प कला का एक बेजोड़ उदाहरण है। अनेकों प्रतिमाओं की कलात्मकता मन को हर लेती हैं। कुछ प्रतिमाओं में जीवनोपयोगी शिक्षाऐं भी होती है। अनेकों प्रतिमाएं बहुत ही दुर्लभ और रोचकता लिए होती है। ऐसी ही अत्यंत दुर्लभ और रोचक प्रतिमा है, सिरपुर से प्राप्त देवी पार्वती की प्रतिमा। 

आप इस प्रतिमा का चित्र देखिए - 

- Sclupture Art Of Sirpur, Plate LIV, C , page no. 202 

इस प्रतिमा में देवी पार्वती के साथ - साथ अनेकों वस्तुओं और प्राणियों का लघु चित्रण भी हुआ है।
प्रतिमा के दायीं ओर शुभ सूचक प्रतीक है ंं जैसे - यज्ञकुंड, शिवलिंग,कच्छप। इसी प्रकार बायीं ओर भी शुभ सूचक चिन्ह हैं जैसे - श्री गणेश जी, परिचारिका, नीचें की ओर सिंह और एक शुभ शकुन सूचक छिपकली। 


प्रतिमा के ऊपर की ओर दो चक्रों के मध्य मातृकाओं के शीर्षों को दिखलाया गया है। मुख्य देवी पार्वती जी को द्विभुज और कमलासन पर खड़ा दर्शाया गया है। अनेकों प्रतिकों सहित यह दुर्लभ प्रतिमा लगभग ६ - ७ शताब्दी की है। 
प्रतिमा में शकुन शास्त्र का प्रयोग भी दृष्टिगोचर होता है। इसमें बायीं ओर छिपकली की आकृति इस बात का संकेत भी करती है। 

फलित ज्योतिष और अनेकों शकुन शास्त्रों में छिपकली की स्थिति के शुभा अशुभ फलों का विवरण किया गया है। जिनमें अधिकांश में छिपकली की बायीं ओर स्थिति को शुभ शकुन माना गया है। जैसे बृहत्संहिता में यात्रा दौरान बायीं ओर छिपकली का दर्शन शुभ शकुन फल वाला माना गया है - 

" शिवा श्यामा रला छुच्छु: पिङ्गला गृहगोधिका।
सूकरी परपुष्टा च पुन्नामाश्च वामतः ॥" - बृहत्संहिता ८५/३७

इसी प्रकार अग्नि पुराण में भी बायीं ओर छिपकली को बायीं ओर शुभ बताया है। वहां भी इसी श्लोक को रखा गया है।

" शिवा श्यामा नना छुच्छु: पिङ्गला गृहगोधिका।
सूकरी परपुष्टा च पुन्नामाश्च वामतः ॥" - अग्नि पुराण २३१/ २७ - २८

 मुहूर्तमार्त्तण्ड में छिपकली का स्त्री के बायीं ओर गिरना शुभ शकुन कहा गया है।

"शुभदा स्त्रियाः फलमिदं वामेतरव्यत्ययात्" - पल्ली सरठ प्रकरणम्, मुहूर्त मार्तण्डः १०/१ " 

इस प्रकार हम देखते हैं कि यह प्रतिमा अत्यंत ही दुर्लभ और रोचकता से भरपूर है। इसमें जहां एक ओर यज्ञकुंड, शिवलिंग, गणेश जी, मातृकाएं हैं तो दूसरी ओर कच्छप, सिंह के साथ - साथ शुभ शकुन सूचक छिपकली का भी अंकन है। छिपकली का अंकन इस बात को भी दर्शाता है कि मुर्तिकार को शकुन शास्त्र का भी ज्ञान था। 

संदर्भ स्रोत - 

1) Sclupture Art Of Sirpur - A. K. Sharma, Prabhat Kumar Singh, Praveen Tirkey 

2) बृहत्संहिता (चर्तुथो भागः ) - अनु. आचार्य नागेन्द्र पाण्डेय

3) अग्नि पुराणम् - अनु. आचार्य शिवप्रसाद द्विवेदी

4) मुहूर्तमार्त्तण्डः - अनु. डॉ. सत्येन्द्र मिश्रः 






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