भारत में प्राचीन काल से लेकर आज तक पंचाङ्गुल या हस्तक के अंकन की प्रथा रही है। पंचाङ्गुल या हस्तक का अर्थ हाथ के छापों के अंकन से है। ये छापे विभिन्न रंगों, सिंदूर, हल्दी आदि में हाथ डुबोकर लगाये जाते हैं।
ये छापे विभिन्न धार्मिक कार्यों, विवाहादि उत्सवों, धार्मिक और विभिन्न स्थलों पर लगाए जाते हैं। इन्हें शुभ प्रतीक के रुप में देखा जाता है। इन्हें लक्ष्मी जी, दुर्गा जी आदि देवियों या विभिन्न देवों और महापुरुषों के हस्त चिह्नों के रुप में भी देखा जाता है। जैसे चरण चिह्नों का अंकन होता है, उसी प्रकार हस्त चिह्नों का भी अंकन होता है।
हम यहाँ हस्तक या पंचाङ्गुल के कुछ साहित्यिक, अभिलेखीय और कलात्मक अंकन देखेगें।
मृच्छकटिकम् के अनुसार यज्ञ पशु के ऊपर रक्त चंदन से हस्तक के निशान लगाने का वर्णन है -
"सर्वगात्रेषु विन्यस्तैः रक्तचन्दन हस्तकैः।
पिष्टचूर्णावकीर्णेश्च पुरुषो अहंपशूकृतः॥" - मृच्छकटिकम् १०.५
हस्तक के चिह्न के प्रमाण हमें भारत में मध्य पाषाण काल से मिलने लगते हैं। मिर्जापुर के शैलचित्रों में अनेकों हाथों के चिह्न प्राप्त होते हैं -
- Rock Art of India, Pl. no. 70, page no. 116
यहां अनेकों हाथ के पंजे के निशान हैं। जो कि इस प्रथा को पाषाण कालीन से सिद्ध करता है।
मध्यप्रदेश के चतुर्भुज नाथ नाला से भी पंचाङ्गुल का अंकन शैल चित्र पर मिलता है -
- Chaturbhujnath Nala : A Magnificent rock art gallery in India, Pl. no. 38
ये शैलचित्र भी मध्य पाषाणकालीन है।
बाणभट्ट के कादम्बरी में देवी चण्डिका के मंदिर में देवी प्रतिमा के सम्मुख रखे लौहे के महिष पर रक्त चंदन से बने हस्तकों के थापों का उल्लेख है।
"अभिमुखप्रतिष्ठितेन च विनिहितरक्तचन्दन हस्तकया... " - कादम्बरी, पूर्वभाग, चण्डिका के मंदिर का वर्णन
चंद्रकेतु गढ, बंगाल से एक देवी फलक प्राप्त हुआ था। जिसमें कलश
के ऊपर देवी को खडा दर्शाया गया है। देवी के केशों को आयुधयुक्त दर्शाया गया है, जिनसे शूल, परशू आदि आयुध निकल रहे हैं। देवी के ऊपर छत्र का अंकन है। एक पुरुष और स्त्री द्वारा देवी को भेंट अर्पित की जा रही है। एक स्त्री सेविका देवी के ऊपर चंवर हिला रही है।
- Eloquent Earth : Early Terracottas in the State Archaeological Museum, West Bengal, After cover page
इस फलक में बनें कलश के ऊपर पंचाङ्गुल अथवा हस्तकों के थापें हैं। जिन्हें आप नीचे चित्र में देख सकते हैं।
- उपरोक्त चित्र से कलश का अंकन
यहां कलश पर अनेकों हस्तकों का अंकन है। कलश पर दो पंचाङ्गुलों के ऊपर एक छत्र भी बनाया गया है। यहां यह चित्र प्राचीन देवी स्थलों पर हस्तकों के थापों की प्रथा की प्राचीनता को प्रमाणित करता है। जैसा कि कादम्बरी में वर्णित चण्डिका मंदिर में भी है।
कादम्बरी, चंद्रकेतु गढ के फलक के समान ही यशोधर्मन के मंदसौर अभिलेख में भी देवी पार्वती जी के पंचाङ्गुलों का उल्लेख है।
इस अभिलेख की दो प्रतियां प्राप्त हुई थी। जिनमें प्रथम पंक्ति में ही भगवान शिव की स्तुति करते हुए लिखा है कि - शूलपाणि शिव की वह पताका तुम्हारे शत्रुओं की शक्ति का मर्दन करें, जिसमें (पताका में) एक ओर वृषभ चिह्न है तथा जिसके अंग पर पार्वती द्वारा पंचाङ्गुल का लाछन हो।
"उक्षाणं तं दधानं क्षितिधरतनयादत पंचाङ्गुलाङ्क द्राधिष्ठ" - Corpus Inscriptionum Indicarum, Vol. III, No. 33, page no. 146, No. 34, Page no. 149
दोनों अभिलेखों का छायाचित्र भी देखें, जिसमें पंचाङ्गुल अंकन शब्द को रेखांकित किया गया है -
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Corpus Inscriptionum Indicarum, Vol. III, Pl. no. XXI. B
- Corpus Inscriptionum Indicarum, Vol. III, Pl. no. XXI. C
यहां इस शब्द का देवनागरी लिप्यंतरण भी देखें -
प्राचीन उज्जैन के सिक्कों पर भी पंचाङ्गुल का अंकन प्राप्त होता है।
- The Journal of Academy of Indian Numismatics & Sigillography (Special Number on coins of Avantika In Memory of Agrapanthas) , Vol. XXV - XXVI (2011 - 12), page no. 202
सिक्के के एक ओर हाथी का अंकन है तथा दूसरी ओर हस्तक और चक्र का अंकन है। सिक्के पर नीचे ब्राह्मी लिपि में उ ज न य भी लिखा है।
महेश्वर से प्राप्त सिक्के पर भी पंचाङ्गुल का अंकन है -
- Numismatic Digest Vol. 38 (2014), page no. 18, Pl. no. V. 14
यह सिक्का देवेंद्र हांडा जी ने प्रकाशित किया था। इसके एक ओर पंचाङ्गुल और इंद्र ध्वज है तथा दूसरी ओर उज्जैनी चिह्न है।
इस प्रकार हस्तक या पंचाङ्गुल का अंकन हमें सिक्कों पर भी मिलता है। बौद्ध स्तूप भर्हुत के फलकों पर भी पंचाङ्गुल का अंकन किया गया है।
- प्रतिमा श्री : भारतीय मुर्तिकला एवं संस्कृति के कतिपय रोचक प्रसंग, चित्र 1, पृष्ठ क्रं. 218
इन पंचाङ्गुलों का वर्णन सर्वप्रथम ए. एल. श्रीवास्तव जी ने किया था। इस फलक को बुद्ध पर मार के प्रहार से जोडा जाता है, जिसमें कामरुपी मार की पराजय होती है। इसमें बुद्ध को अग्नि वेदी रुप में दर्शाया है। जिनके पीछे पंचाङ्गुलों का अंकन है।
इन हस्तकों का अंकन विवाहादि महोत्सवों में विभिन्न वस्तुओं पर, मनुष्यों आदि पर आज भी चंदन/रोली/हल्दी से आज भी किया जाता है। बाण ने अपने हर्षचरित में विवाह उत्सव में पंचाङ्गुलों के थापों का उल्लेख किया है -
"पिष्टपञ्चाङ्गुलमण्ड्यमानोलूखलमुसलशिलाद्युपकरणम्" - हर्षचरित, चतुर्थ उच्छ्वास, राज्य श्री का विवाहोत्सव
यहां विवाहोत्सव में मूसल, उलूख आदि विवाह में काम आने वाली सामग्रियों पर हाथों के थापे अर्थात हस्तकों को लगाने का उल्लेख है।
मथूरा के सोंख से खुदाई के दौरान भी एक पकी मिट्टी से बना पंचाङ्गुल प्राप्त हुआ था -
- Excavation At Sonkh : 2500 years of a town in Mathura district, page no. 241, fig. 1 (B)
इस पंचाङ्गुल पर इंद्रध्वज, नंदिपदम्, स्वस्तिक जैसे शुभ चिह्न अथवा लांछन भी है। यह कुषाण कालीन है।
पंचाङ्गुल के थापों का अंकन भारत में आजतक परम्परागत रूप से विद्यमान है। आज भी विभिन्न अनुष्ठानों, उत्सवों के दौरान सामानों पर, घरों या दुकानों की दीवारों पर, पशुओं पर, मनुष्यों पर हस्तकों का अंकन किया जाता है। उदाहरण के रुप में आप एक घर की दीवार पर पंचाङ्गुल अंकन को देख सकते हैं -
यह थापे आधुनिक हैं। किंतु हमें इससे यह संकेत मिलता है कि हाथ के छापों के शैलचित्रों के रुप में प्राचीन अंकन हमें अन्य देशों और द्वीपों में भी प्राप्त होते हैं किंतु इन थापों की सतत् परम्परा और आज तक अनुप्रयोग हमें भारत में ही मिलता है। अर्थात् एक पाषाण कालीन परम्परा को भारतीयों ने आज तक संरक्षित रखा है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि पंचाङ्गुल अंकन के प्रमाण हमें साहित्यों के साथ - साथ प्राचीन शैलचित्रों, सिक्कों, स्तूपों, देवी फलकों, शिलालेखों के वर्णनों में और मृण्शिल्पों में देखने को मिलता है। जो कि आज तक जारी है। आज भी आप विभिन्न अनुष्ठानों - उत्सवों में हस्तकों के थापें लगाने की परम्परा को देख सकते हैं।
संदर्भ स्रोत -
1) Rock Art of India - Giriraj Kumar
2) महाकवि शूद्रक प्रणीतम् "मृच्छकटिकम्" - अनु. डॉ. जयशङ्करलाल त्रिपाठी
3) Chaturbhujnath Nala : A Magnificent rock art gallery in India - Giriraj Kumar
4) कादम्बरी - अनु. पाण्डेय रामतेज शास्त्री
5) Eloquent Earth : Early Terracottas in the State Archaeological Museum, West Bengal -Gautam Sengupta, Sima Roy chowdhury, Shami Chakraborty
6) Corpus Inscriptionum Indicarum, Vol. III (Inscriptions of the early gupta kings and their Successors) - John Faithfull Fleet, C.I.E.
7) The Journal of Academy of Indian Numismatics & Sigillography (Special Number on coins of Avantika In Memory of Agrapanthas) , Vol. XXV - XXVI (2011 - 12)
8) Numismatic Digest Vol. 38 (2014)
9) प्रतिमा श्री : भारतीय मुर्तिकला एवं संस्कृति के कतिपय रोचक प्रसंग - ए. एल. श्रीवास्तव
10) महाकवि बाणभट्ट विरचितं हर्षचरितम् - अनु. पं. श्री जगन्नाथपाठकः
11) Excavation At Sonkh : 2500 years of a town in Mathura district - Herbert Hartel
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