कुषाण काल में कृष्ण, बलराम और एकनंशा की प्रतिमाएं!!!
कुषाण काल में विभिन्न प्रतिमाओं का सर्जन शुरु हो गया था। इसी में सबसे महत्वपूर्ण भगवान कृष्ण, बलराम और एकनंशा की प्रतिमाएं हैं। इन प्रतिमाओं की यह विशेषता है कि इनमें दो भाई और एक बहन को एक साथ दर्शाया जाता है। जबकि प्रायः प्रतिमाओं में पति पत्नियों को दर्शाया जाता है। भाई और बहन की यह संयुक्त प्रतिमाऐं , एक तरह से भाई - बहन के मध्य आपसी सत्कार, प्रेम का भी संदेश देती हैं। इन प्रतिमाओं में भगवान कृष्ण जो छोटे भाई है, भगवान बलराम जो कि बड़े भाई हैं तथा मध्य में इन दोनों की बहन एकनंशा को दर्शाया जाता है। इस प्रकार बलराम, एकनंशा और वासुदेव जी की प्रतिमा का लक्षण हमें वराहमिहिर की बृहत् संहिता में मिलता है -
एकनंशा कार्या देवी बलदेवकृष्णयोर्मध्ये कटि संस्थितवामकरा सरोजमितरेण चोद्वहती - बृहत्संहिता ५८.३७
अर्थात देवीएकनंशा को कमर पर हाथ रखते हुए, कृष्ण और बलराम जी के मध्य बनाया जाए।
बृहत्संहिता में वर्णित प्रतिमाओं के लक्षण हमें विभिन्न स्थानों से मिली कुषाण कालीन प्रतिमाओं में स्पष्ट नजर आते हैं। यहां हम कुछ प्रतिमाओं को देखते हैं, जिनमें वासुदेव, बलराम और एकनंशा जी को दर्शाया गया है -
- Expression in Indian Art, fig. 19.13
यह प्रतिमा मथूरा से प्राप्त हुई थी। इसका नीचला हिस्सा कुछ खंडित है। इसमें बलराम जी को सिंहमुख हल धारण किए दिखाया गया है। मध्य में देवी एकनंशा जी को दिखाया है, जिनका एक हाथ कटि पर तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में है, फिर श्रीकृष्ण जी को चक्रसहित दर्शाया गया है।
- Gods,Men and Women: Gender and Sexuality in Early Indian Art, fig.3.4.10, page no. 173
यह प्रतिमा भी मथूरा से प्राप्त हुई थी। इसमें भी तीनों का अंकन था किंतु इसमें श्रीकृष्ण जी वाला हिस्सा नष्ट हो चुका है, अतः इसमें हम सिंह मुख हल के साथ श्री बलराम जी और देवी एकनंशा को ही देख सकते हैं।
- Many heads,Arms and Eyes: Origin, meaning and form of multiplicity in Indian Art, Pl. no. 16.5
यह प्रतिमा भी मथूरा से प्राप्त हुई थी। मगर यह प्रतिमा पूरी तरह से स्पष्ट है। इसमें बलराम जी और वासुदेव जी को चतुर्भुज रुप में दर्शाया गया है। बलराम जी के हाथों में मूसल और सिंहमुख हल है। मध्य में एकनंशा जी हैं, जिनके हाथ में कलश है। तथा वासुदेव जी के हाथ में गदा और चक्र है।
- Listening to Icons : Vol .1 Indian Iconographic and Iconological Studies, fig. 11.3, page no. 232
जैसे उपरोक्त एक प्रतिमा में वासुदेव जी का अंकन नष्ट हो चुका था और मात्र बलराम जी और एकनंशा का अंकन दृष्टिगोचर हो रहा था। वैसे ही मथूरा से प्राप्त इस प्रतिमा में बलराम जी और एकनंशा की प्रतिमाओं वाला हिस्सा नष्ट हो चुका है, इसमें चक्रधारी श्री वासुदेव जी और अस्पष्ट खंडित सा देवी एकनंशा का अंकन देखा जा सकता है। भगवान वासुदेव को चतुर्भुज रुप में हैं, जिनके हाथों में चक्र,गदा और शंख है। बलराम जी का अंकन पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुका है।
- Sculptures From Haryana : Iconography & Style , Pl. 21
यह प्रतिमा हरियाणा के संगेल से प्राप्त हुई थी। इसमें सिंह मुख हल और मूसल सहित बलराम जी का स्पष्ट अंकन है। मध्य में कटि पर हाथ रखे और वरदमुद्रा में देवी एकनंशा है। भगवान वासुदेव जी का सिर खंडित है किंतु उनका एक हाथ कटि पर और दूसरा वरदमुद्रा में है।
- Comprehensive history of Bihar Vol. 1, Part 1 , plate no. 43
यह तीनों प्रतिमाएं पटना संग्रहालय में हैं, इनमें हल सहित बलराम जी, मध्य में एकनंशा देवी तथा दांए ओर शंख धारण किए भगवान कृष्ण को अंकित किया है। तीनों का एक हाथ वरदायी मुद्रा में है। यह वृष्णि भाई बहन की प्रतिमा बिहार से प्राप्त हुई थी।
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