अंगूर - प्राचीन भारतीय चिकित्सा शास्त्र और पुरातत्व में!!!

कुछ दिनों पहले "द प्रिंट मीडिया" में एक खाद्य इतिहासकार सलमा युसुफ हुसैन ने लिखा था कि भारत में अंगूर भारत में मुगलों की देन हैं। https://theprint.in/pageturner/excerpt/no-one-could-see-shah-jahan-eat-but-a-portugese-priest-once-snuck-in-and-heres-what-he-saw/244067/ उनके इस दावें की हम प्राचीन भारतीय साहित्य, कला और जैव - पादप पुरातत्व के आधार पर समीक्षा करेगें। भारत में चिकित्सा शास्त्र में अंगूरों का अत्यंत महत्व रहा है। आसव, अरिष्टादि औषधियां बनाने में अंगूर का उपयोग होता था। चरक संहिता के सूत्रस्थान में अंगूर को फलों में उत्तम कहा गया है। "मृद्वीका फलानां" - चरक संहिता, सूत्र स्थान २५.६७ अर्थात् फलों में अंगूर (काले अंगूर ) श्रेष्ठ हैं। इसी प्रकार आगे लिखा है कि अंगूर तृष्णा, दाह, ज्वर को शांत करता है। रक्तपित्त, खांसी, स्वरभेद, मुख का सुखना, मदात्य, वात, मुख का तिक्त होना आदि को शीघ्र नष्ट करता है।यह बृहण, मधुर, स्निग्ध तथा शीतल होता है। "तृष्णादाहज्वरश्वासरक्तपित्तक्षतक्षयान्। वातपित्तमुदावर्त्त स्वरभेदं मदात्ययम्॥ तिक्तास्यतामारस्यशोषं कासं चाशु व्यपो...