जब साहित्यिक जनश्रुति को शिल्पी ने प्रस्तर पर उकेरा!!!
मूल लेखक - डॉ. सत्यप्रकाश श्रीवास्तव जी।
नमस्ते पाठकों! ब्लाग के दूसरे लेख में आपका स्वागत है। आज भी एक नयी जानकारी के साथ हम आप सबके समक्ष प्रस्तुत हैं। आज के लेख में हम एक प्रसिद्ध जनश्रुति का शिल्प में भी प्रयोग देखेगें।
एक प्रसिद्ध ही जनश्रुति काव्यों में मिलती है कि चातक पक्षी स्वाति नक्षत्र में वर्षा की बूंदों को पृथ्वी पर गिरने से पूर्व ही बड़ी कुशलता से अपनी चोंच में ग्रहण कर लेता है, अन्य समय एवं भूमि पर गिरे हुए जल को वह ग्रहण नहीं करता। अनेकों संस्कृत कवियों ने इसका उल्लेख किया है। कालिदास जी ने भी मेघदूतम् में इसका उल्लेख किया है -
"अम्भोबिन्दु ग्रहण चतुरश्चातकान् वीक्षमाणाः।
श्रेणीभूताः परिगणनया निर्दिशन्तो बलाकाः॥
त्वासामाद्य स्तनितसमये मानयिष्यन्ति सिद्धाः।
सोत्कम्पानि प्रियसहचरी संभ्रमालिङ्गितानि॥" - पूर्वमेघ २२
- प्राच्य विद्या के विविध आयाम, पृष्ठ ५९
उपरोक्त जनश्रुति का भारतीय कला में भी अंकन प्राप्त होता है। मथुरा संग्रहालय में कुषाण कालीन एक ऐसी प्रस्तर प्रतिमा सुरक्षित है, जिसमें नायिका अपने बालों को निचोड़ रही है और चातक उसके बालों को मेघ की काली घटा समझ कर उससे गिरती हुई बूंदों को ग्रहण करने हेतु ऊपर देख रहा है।
इसी प्रकार सांगोल में भी ऐसी ही प्रतिमा प्राप्त होती है -
यहां शिल्पी ने इतना सुंदर प्रयोग किया है कि प्रतिमा में ही जनश्रुति का भाव भी निहित कर दिया और नायिका के काले घने बालों की उपमा काले मेघ से भी दर्शा दी। नायिका के भीगें बाल निचोड़ने की तुलना को शिल्पी ने स्वाति नक्षत्र से गिरने वाली जल की बूंद से भी सुंदर प्रकार से जोड़ दिया। जहां कवियों ने काव्यों में उपमा और जनश्रुति का सुंदर प्रयोग किया है, वहीं शिल्पी ने भी इन दोनों का प्रस्तर प्रतिमा में सुंदर अनुप्रयोग किया है। साहित्यिक वर्णन का अद्भुत शिल्पांकन और क्या हो सकता है?
संदर्भ स्रोत -
(1) प्राच्य विद्या के विविध आयाम - डॉ. सत्यप्रकाश श्रीवास्तव
(2) The Splendour Of Mathura Art & Museum -R. C. Sharma
(3) Gods, Men and Women: Gender and Sexuality in Early Indian Art - Seema Bawa
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