प्राचीन भारत में स्नान के लिए प्रयुक्त इष्टिका का स्वरूप !!!

 नमस्ते पाठकों! साहित्य और संस्कृति के तीसरे लेख में आपका स्वागत है। हमने पहले लेख में स्नानगृह के बारे में बताया था। वहां हमने सुश्रुत संहिता का प्रमाण भी उद्धृत किया था। ऐसे में उस स्थान पर हमें शरीर रगड़ने और मेल छुडाने के लिए "इष्टिका" का प्रयोग दिखा। ऐसे में विचार बनता है कि क्या यह इष्टिका सामान्य ईंटों के टुकड़े थे अथवा इनका विशेष स्वरूप था? पुरातात्विक अनुसंधानों को देखने से ज्ञात हुआ कि शरीर का मेल छुडाने के लिए, विशेष इष्टिकाओं का निर्माण किया जाता था। सामान्य ईंटों के समान ही, यह भी पक्की मिट्टी की बनती थी। भारत के प्रत्येक काल सिंधु सभ्यता, ताम्रपाषाणी सभ्यता, लौह सभ्यता, महाजनपद काल से गुप्तकाल तक ऐसी मिट्टी की पकी मैल छुडाने वाली इष्टिकाऐं प्राप्त हुई हैं। आज भी खुरदुरे पत्थर, झामें का प्रयोग होता है। 

मैल छुडाने के लिए इष्टिका प्रयोग पर हम पहले साहित्यिक प्रमाण देखते हैं, फिर पुरातात्विक प्रमाणों से उनका स्वरुप भी जानेगें - 

"उद्धर्षणं त्विष्टिकया कंडूकोठविनाशनम्।" - सुश्रुत संहिता, चिकित्सितस्थान अ. २४, श्लोक ५४ 
अर्थात् इष्टिका से त्वचा को रगड़ना कोढ़ तथा कंडू का नाश होता है।

बौद्ध ग्रंथ विनय पिटक में भी, इसका प्रयोग दिखता है किंतु गौतम बुद्ध ने इसका प्रयोग भिक्षुओं के लिए निषेध किया था - 

"तेन खो पन समयेन छब्बग्गिया भिक्खू कुरुविन्दकसुत्तिया नहायन्ति। मनुस्सा उज्झायन्ति खिय्यन्ति विपाचेन्ति…पे॰… सेय्यथापि गिही कामभोगिनोति! भगवतो एतमत्थं आरोचेसुं। ‘‘न, भिक्खवे, कुरुविन्दकसुत्तिया नहायितब्बं। यो नहायेय्य, आपत्ति दुक्‍कटस्सा’’ति।" - ५. खुद्दकवत्थुक्खन्धकं , खुद्दकवत्थूनि, चूळवग्गपाळि, विनयपिटक
अर्थात् षड्वर्गीय भिक्षु एक समय कुरुविन्दक शुक्ति से नहाते थे। लोग उन्हें देखकर खिन्न होते थे, धिक्कारते थे। कि कैसे भिक्षु नहाते हैं और शरीर को रगड़ते हैं, जैसे कामभोगी गृहस्थ। 
भगवान ने कहा - "भिक्षुओं! कुरुविन्दकसुत्ति से नहीं नहाना चाहिए। नहानें पर दुक्कट दोष होगा।

इसी अध्याय पर बुद्धघोष ने अट्ठकथा में "कुरुविन्दकसुत्ति" के बारे में लिखा है - "कुरुविन्दकसुत्तियाति कुरुविन्दकपासाणचुण्णानि लाखाय बन्धित्वा कतगुळिककलापको वुच्‍चति, तं उभोसु अन्तेसु गहेत्वा सरीरं घंसन्ति। विग्गय्ह परिकम्मं कारापेन्तीति अञ्‍ञमञ्‍ञं सरीरेन सरीरं घंसन्ति।" - खुद्दकवत्थुक्खन्धकं, चूळवग्ग अट्ठकथा, विनयपिटक अट्ठकथा
अर्थात् पत्थर के चूर्ण में लाख को मिलाकर बांधकर पिट्टी या गुल्लिका बनायी जाती थी, जिससे स्नान के समय शरीर को घिसा या रगड़ा जाता था।

अतः स्पष्ट है कि विनयपिटक और सुश्रुत संहिता दोनों में स्नान के समय शरीर रगड़ने वाली इष्टिका का उल्लेख है। ऐसी इष्टिकाओं की प्राप्ति, भारत के अनेकों स्थानों से और सिंधु सभ्यता के काल से लेकर मध्यकाल तक हुई है। यहां हम इसके स्वरुप निर्धारण के लिए, कुछ भी उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं - 

- MEMOIRS OF THE ARCHAEOLOGICAL SURVEY OF INDIA No. 113, Excavation At Hulas (1978 - 1983), Pl. XVIII, Page no. 167 

यह इष्टिका लगभग 600 - 200 ईसापूर्व की है, इसे मिट्टी को पकाकर बनाया गया है। यह हुलास से प्राप्त हुई थी।

- Study of Terracotta Objects from Chandankheda, Maharashtra, fig. 20, Page no.848

यह इष्टिका भी पक्की मिट्टी से निर्मित है। यह चंदनखेडा से प्राप्त हुई थी, तथा यह मौर्य - कुषाण काल तक अनुमानित है।


- MEMOIRS OF THE ARCHAEOLOGICAL SURVEY OF INDIA No. 97: Further Excavation At Pauni 1994, Plate XXIII

यह इष्टिका भी पोनी से प्राप्त हुई थी। यह कुषाण कालीन है। 


- MEMOIRS OF THE ARCHAEOLOGICAL SURVEY OF INDIA No. 109 : Excavations at Adam(1988 - 1992), A City of Asika Janapada, Pl. 11.14, Page no. 429 

अडाम से प्राप्त यह इष्टिका १५० ईसापूर्व - २५० ईस्वी तक निर्धारित की गई है। यह भी मिट्टी को पकाकर बनायी गई थी।

- Excavations At Atranjikhera : Early Civilization of The Upper Ganga Basin, plate XCVI

यह अतरंजीखेडा की खुदाई में प्राप्त हुई थी। पकी हुई मिट्टी से बनाई गई यह इष्टिका 600 - 50 ईसापूर्व के मध्य की है।

- Chalcolithic Navdatoli (Excavations at Navdatoli, 1957 - 59), fig. 117 nos. 1 - 2 

मिट्टी को पकाकर बनायी गई यह मैल छुड़ाने वाली इष्टिकाऐं 1200 ईसापूर्व प्राचीन है। यह ताम्रपाषाणीय संस्कृति से है। यह नवाढतोली से प्राप्त हुए थे। 

इस प्रकार से हमने इष्टिकाओं का पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर स्वरूप देखा है। इसमें मिट्टी की टिक्की बनाकर, उसकी एक या दोनों सतहों को खुरदुरा अथवा उभार लिए हुए संरचनाओं में बनाया गया था, जिससे कि स्नान करते समय शरीर पर आसानी से घर्षण किया जा सके और मैल उतारा जा सके। इससे खुजली जैसे त्वक रोगों का भी उपशमन होता होगा। यहां हमने साहित्यिक प्रमाण सुश्रुत संहिता से स्नान के समय उपयोग आने वाली इष्टिका का उल्लेख देखा तथा पुरातात्विक प्रमाणों से उल्लेखित इष्टिका के स्वरूप की भी जानकारी प्राप्त की है।

संदर्भ स्रोत - 
(1) सुश्रुत संहिता, जिल्द २, चिकित्सा स्थान - टीकाकार राजवैद्य पं. मुरलीधरजी शर्मा फर्रुखनगर निवासी 

(2) विनय पिटक - https://tipitaka.org/

(3) विनयपिटक अट्ठकथा - https://tipitaka.org/

(4) MEMOIRS OF THE ARCHAEOLOGICAL SURVEY OF INDIA No. 113 - Ed. K. N. Dikshit

(5) Study of Terracotta Objects from Chandankheda, Maharashtra - Mohan S. Pardhi & others 

(6) MEMOIRS OF THE ARCHAEOLOGICAL SURVEY OF INDIA No. 97 - Ed. Amarendra Nath 

(7) MEMOIRS OF THE ARCHAEOLOGICAL SURVEY OF INDIA No. 109 - Ed. Dr. Amarendra Nath 

(8) Excavations At Atranjikhera : Early Civilization of The Upper Ganga Basin - R.C. Gaur 

(9) Chalcolithic Navdatoli (Excavations at Navdatoli, 1957 - 59) - H. D. Sankalia, S. B. Deo, Z.D. Ansari 


 


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