वाराणसी से प्राप्त एक मुहर में वत्सराज उदयन का चित्रण!!!
भारत में लगभग 500 ईसापूर्व वत्स राज्य में महाराजा उदयन हुए थे। महाराजा उदयन इतने प्रसिद्ध थे कि उनके पश्चात भी विभिन्न नाटकों में उनका चरित्र स्मरण होता रहा है। न केवल साहित्य में अपितु कला में भी राजा उदयन पर आधारित नाटकों का अंकन मृण्य शिल्पों पर होता रहा है। इनमें कौशांबी के मृण्फलक प्रसिद्ध हैं, जिनमें हस्ति के ऊपर राजा उदयन, स्वप्नवासवदत्ता और विदुषक का अंकन है। इसी प्रकार एक मिट्टी की मुहर हमें वाराणसी से भी प्राप्त होती है -
- Varanasi Seals And Sealings, fig. 406इस मुहर को स्पष्ट दर्शाने के लिए, इसमें कुछ रंगों का प्रयोग किया है -
उपरोक्त मुहर में एक व्यक्ति बैठकर एक बड़ी से वीणा को बजा रहा है तथा उससे आगे की तरफ एक हाथी को दर्शाया गया है।
इस चित्रण की तुलना हम महाकवि भास के नाटक "प्रतिज्ञायौगन्धरायण" में वर्णित, उस घटना से कर सकते हैं, जिसमें राजा उदयन वीणा बजाकर एक हाथी (महासेन का कृत्रिम हाथी) को वश में करना चाह रहे हैं।
प्रतिज्ञायौगन्धरायण के अनुसार राजा उदयन को हाथियों का शोक होता है तथा वह अपनी वीणा के वादन के द्वारा हाथियों को वश में कर लेते थे। उनकी यह कला, सम्पूर्ण देशभर में प्रसिद्ध थी। इसी बात का फायदा उठाकर उज्जैन के राजा महासेन एक कृत्रिम हाथी को भेजते हैं, ताकि जब उदयन उसे पकड़े तो हाथी के अंदर छिपे सैनिक राजा उदयन को बंदी बना लें।
एक दुष्ट छद्म सैनिक आ कर राजा उदयन को इस विचित्र हाथी के बारे में जानकारी देता है। राजा उदयन उसे सुवर्ण मुद्रा दान देकर कहते हैं। इस घटना और राजा उदयन के कथन को हंसक इस प्रकार कहते हैं -
" तदो सुवण्णसदप्पदाणेण तं णिसंसं पडिपूजिअ भट्टिणां उत्तं
अत्थि एसो चक्कवटी हत्थी णीळकुवळअतणू णाम हत्थिसिक्खाए पठियो। ता अप्पमत्ता होह तुम्हे इमस्सिं जूहे। गऊं तं अहं वीणादुदीओ आणेमित्त।" - २. प्रतिज्ञा यौगन्धरायण, १.६.३३, भास नाटक चक्रम
अर्थात् फिर उस क्रूर सैनिक को सौ सुवर्णा मुद्राओं द्वारा सम्मानित कर स्वामी ने उससे कहा, निश्चय ही यह वही नील कुवलय नामका चक्रवर्ती हाथी है जिसका वर्णन मैनें हस्तिशिक्षा में पढ़ा है। अब तुम सब इस गज दल के विषय में सतर्क हो जाओ। इस हाथी को मैं वीणा - वादन द्वारा वश करके लाता हूं।
इसके बाद वे हाथी को देखते हैं, जो कि सौ धनुष की दूरी पर होता है।
"तदो दिउणं विअ अद्धाणं गच्छिअ साळळुक्खच्छाआए सवण्णट्ठणीळदाए परूब्भासिदेहि असरीरविणिक्खित्तेहि विअ दन्तजुअळेहि सूइदो धणुसदमत्तेण विअ दिट्ठो सो दिव्ववारणयडिच्छन्दो" - २. प्रतिज्ञा यौगन्धरायण, १.३.६०, भास नाटक चक्रम
अर्थात् उसके बाद दूगने वेग से मार्ग चलकर सघन सालों की छाया में समान रंग होने से नीलिमा नष्ट हो जाने के कारण मानो शरीर बिना ही चमकते दांतों वाले उस दिव्य गज का बनावटी आकार सौ धनुष की दूरी पर लक्षित हुआ।
इसके पश्चात राजा उदयन उस हाथी को अपनी वीणा बजाकर वश में करने का प्रयास करते हैं।
"तदो भट्टिणा ओदरिअ अस्सादो आअमिअ देवदाणं पणामं करिअ गहीदा वीणा। तदो पिट्ठदो एक्ककिदणिराओ विअ महन्तो कण्ठीरवो समुप्पण्णो" - २. प्रतिज्ञा यौगन्धरायण, १.३.६६, भास नाटक चक्रम
अर्थात् फिर घोड़े से उतरकर स्वामी ने देवताओं को प्रणाम किया और वीणा हाथ में ली। तब पीछे से मत्तगज का भारी चिग्घाड़ सुन पड़ा।
इस सम्पूर्ण विवरण की तुलना अगर हम उपरोक्त चित्र से करें तो हमें पता चलता है कि मुहर में वीणा बजाता हुआ व्यक्ति कोई और नहीं अपितु राजा उदयन है, जो कि वीणा बजाकर बाहर चित्रित हाथी (महासेन का कृत्रिम हाथी) को वश में करने का प्रयास कर रहा है।
चुंकि यह महासेन की चाल थी। इसलिए उस नकली हाथी से महासेन के सैनिक निकलकर, राजा उदयन को बंदी बना लेते हैं।
"तदो कण्ठीरवपरिञ्ञाणणिमित्तं परिवुत्ता अ वअं। महामत्तोत्तराउहीआहिट्ठिदो पच्चुग्गदो सो किदअहत्थी।" - २. प्रतिज्ञा यौगन्धरायण, १.३.७२, भास नाटक चक्रम
अर्थात् फिर उस चिग्घाड़ को सही - सही समझने के प्रयत्न में हम सब लगे। इसी बीच शस्त्रधारी महामात्र सैनिकों सहित सहसा निकल पड़े और जिससे उस गज का कृत्रिम स्वरूप खुल गया।
इस प्रकार हम देखते हैं कि राजा उदयन की प्रसिद्धि इतनी थी कि उनके ऊपर रचित नाटकों का चित्रण ग्रंथों तक ही सीमित नहीं रहा अपितु यह प्राचीन मिट्टी की मुहरों पर भी अंकित हो गया था। कलात्मक अभिव्यक्ति द्वारा जनमानस में राजा उदयन की प्रसिद्धि इन मुहरों से स्वतः सिद्ध है।
संदर्भ स्रोत -
(१) भासनाटकचक्रम् - सम्पा. सी. आर. देवधर
(२) Varanasi Seals And Sealings - Vasudeva S. Agrawala
Comments
Post a Comment