प्राचीन भारत में दंतकार (हाथी दांत के कारीगर)
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भारत प्राचीनकाल से ही शिल्पियों का देश रहा है। यहां शिल्पियों द्वारा इतिहास में अनेकों अद्भूत निर्माण किये गये हैं। इनके अनेकों विभाग भी हैं जैसे - कांस्यकार, लौहकार, कुम्भकार, रथकार, चित्रकार, स्वर्णकार, रुपकार, रुप्यकार और दंतकार आदि। यहां हम आज दंतकार के विषय में बात करेगें। दंतकार से तात्पर्य दंत से रुपादि निर्माण करने वाला कारीगर। यहां दंत से तात्पर्य हाथी के दांत से लिया जाता है। आज भी देश के अनेकों स्थानों पर हाथी दांत से बने आभूषणों का अत्यंत महत्व है। दंतकारों के अभिलेखीय साक्ष्य हमें सांचि के स्तूप के एक फलक से प्राप्त से होता है, जहां दंतकार द्वारा दान देने का उल्लेख है - - Sanchi Through Inscription (@C - ASI Bhopal) इस पर ब्राह्मी लिपि में - "वेदस के हि दंतकारे हि रुपकंम कतं" लिखा है। जो कि विदिशा के दंतकार का शुंग कालीन अभिलेखीय साक्ष्य है। दूसरा अभिलेखीय साक्ष्य ११ शताब्दी के बंगला लिपि के भटेरा ताम्रलेख पर मिलता है, जो कि राजा गोविंद केशवदेव के कार्यकाल में लिखवाया गया था। अभिलेख की 51 वीं पंक्ति में दंतकार का उल्लेख है - "दि गृह ३ सिहाडवग्रामे दन...