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Showing posts from November, 2023

प्राचीन भारत में दंतकार (हाथी दांत के कारीगर)

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 भारत प्राचीनकाल से ही शिल्पियों का देश रहा है। यहां शिल्पियों द्वारा इतिहास में अनेकों अद्भूत निर्माण किये गये हैं। इनके अनेकों विभाग भी हैं जैसे - कांस्यकार, लौहकार, कुम्भकार, रथकार, चित्रकार, स्वर्णकार, रुपकार, रुप्यकार और दंतकार आदि।  यहां हम आज दंतकार के विषय में बात करेगें। दंतकार से तात्पर्य दंत से रुपादि निर्माण करने वाला कारीगर। यहां दंत से तात्पर्य हाथी के दांत से लिया जाता है। आज भी देश के अनेकों स्थानों पर हाथी दांत से बने आभूषणों का अत्यंत महत्व है। दंतकारों के अभिलेखीय साक्ष्य हमें सांचि के स्तूप के एक फलक से प्राप्त से होता है, जहां दंतकार द्वारा दान देने का उल्लेख है -  - Sanchi Through Inscription (@C - ASI Bhopal)  इस पर ब्राह्मी लिपि में - "वेदस के हि दंतकारे हि रुपकंम कतं" लिखा है। जो कि विदिशा के दंतकार का शुंग कालीन अभिलेखीय साक्ष्य है। दूसरा अभिलेखीय साक्ष्य ११ शताब्दी के बंगला लिपि के भटेरा ताम्रलेख पर मिलता है, जो कि राजा गोविंद केशवदेव के कार्यकाल में लिखवाया गया था। अभिलेख की 51 वीं पंक्ति में दंतकार का उल्लेख है - "दि गृह ३ सिहाडवग्रामे दन...

प्राचीन काल का समय मापक यंत्र - घटियंत्र (नाड़ी यंत्र)!!!

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 प्राचीन काल से ही लोग समय को ज्ञात करने के लिए विभिन्न पद्धतियों का प्रयोग करते आ रहे हैं। ये पद्धतियां मुख्यत: आकाशीय पिण्डों की गति और पृथ्वी से उसकी स्थिति पर आधारित रही है। किंतु अनेकों बार कृत्रिम साधनों का भी प्रयोग समय मापन में किया जाता था। समय मापने वाले ये कृत्रिम साधन घटी या घड़ी कहे जाते थे। प्राचीन काल में घड़ी सूर्य के प्रकाश और जल पर आधारित बनाई जाती थी।  दिन के समय में धूप घड़ी या सूर्य घड़ी के द्वारा समय का ज्ञान किया जाता था किंतु रात्रि के समय जल घड़ी के द्वारा समय ज्ञान किया जाता था। जल घड़ी को ही घटियंत्र या नाडीयंत्र भी कहा जाता है। इससे न केवल रात्रि अपितु दिन में भी समय ज्ञान हो जाता था। घडियंत्र को नाड़ी यंत्र अथवा नाडिक इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि इसमें समय मापन का मात्रक "नाड़ी" शब्द से प्रयोग किया गया है। इस यंत्र का वर्णन वराहमिहिर ने 'पञ्चसिद्धान्तिका' में इस प्रकार किया है -  "द्युनिशिविनः सृततोयादिष्टच्छिद्रेण षष्टिभागो यः। सा नाड़ी स्वमतो वा श्वासाशीतिः शतं पुंसः॥३१॥ कुम्भार्धाकारं ताम्रं पात्रं कार्यं मूले छिद्रं स्वेच्छे तोये ...